Monday, June 29, 2009

स्वीकार है.....

एक अजीब सी मानसिकता आज भी समाज को घेरे है यदि नारी तकलीफ सहते हुए भी और स्वीकार करने को तैयार है तो वह संपूर्ण नारी है अन्यथा उसका नारीत्व सवालों के घेरे में है.. ऐसे में उसके पास रास्ता क्या है या तो हर परिस्थिती को स्वीकार करे या विद्रोह कर अपने अनुकूल स्थिती बना ले.. और शायद एक जिंदगी के लिए आवश्यक भी है.. क्योंकि समाज का एक वर्ग सक्षम है और वहीं दूसरा यदि असक्षम है तो ऐसे समाज की केवल कल्पना मात्र भी........