चौराहे पर भीड़ जुटी थी
मानो शहर इकठा होने का मंत्री ने न्यौता भेजा हो !!
पास पहुंचे तो कहानी कुछ और थी
कानून के रखवाले, खाकी वर्दी डाले
मार रहे थे गरीब को, बोल रहे थे साले
उधेड़े जाते थे उनकी खाले!
मिलिए इनसे ये है, ये है कानून के रखवाले !!
कसम खाते है रक्षा की, आमिर की हो या गरीब की
पर करते है सिर्फ़ अपने अज़ीज़ की !!
झौपड़ी के बाहर बैठी बुढ़िया रोती थी
उस वक्त जब सारी दुनिया सोती थी
हम मस्तमौला गुज़रते थे वहां से
सुन लिया हमने, जो वो कहना चाहती थी???
कल खाली करनी है अपनी झौपड़ी
ऑर्डर है पुलिस का साजिश है रईस की
यहाँ पुलिस बाबु का,
हमसे रिश्ता न उनसे नाता !!!!
यहाँ साहब ने पाया पैसा, जो हर पल साथ निभाता
आख़िर क्यों बन गया कानून
ऐसी जौंक जो चूसता खून
छीनता रोटी जो खाते हम दो जून
कहीं छा गया हम पर भी जूनून
तो बदल न जाए ये किस्से-कानून .....