Tuesday, July 28, 2009

अंधेर गलियारा



चौराहे पर भीड़ जुटी थी

मानो शहर इकठा होने का मंत्री ने न्यौता भेजा हो !!

पास पहुंचे तो कहानी कुछ और थी

कानून के रखवाले, खाकी वर्दी डाले

मार रहे थे गरीब को, बोल रहे थे साले

उधेड़े जाते थे उनकी खाले!

मिलिए इनसे ये है, ये है कानून के रखवाले !!

कसम खाते है रक्षा की, आमिर की हो या गरीब की

पर करते है सिर्फ़ अपने अज़ीज़ की !!

झौपड़ी के बाहर बैठी बुढ़िया रोती थी

उस वक्त जब सारी दुनिया सोती थी

हम मस्तमौला गुज़रते थे वहां से

सुन लिया हमने, जो वो कहना चाहती थी???

कल खाली करनी है अपनी झौपड़ी

ऑर्डर है पुलिस का साजिश है रईस की

यहाँ पुलिस बाबु का,

हमसे रिश्ता न उनसे नाता !!!!

यहाँ साहब ने पाया पैसा, जो हर पल साथ निभाता

आख़िर क्यों बन गया कानून

ऐसी जौंक जो चूसता खून

छीनता रोटी जो खाते हम दो जून

कहीं छा गया हम पर भी जूनून

तो बदल न जाए ये किस्से-कानून .....

3 comments:

  1. likho itna likho ki har roz kuchh kat kar feink sako.
    kavita jo sadiyon tak dhadkati hai veh shabd ki ATMA hoti hai na ki shabd.
    never try to explain things.
    shabdon ke antral mein jo machhali si tairti hai use pathak ko apney star par mehsoos karney do.
    shubhkamnayein

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  2. बढिया जी, अच्छे..लगे विचार शुक्रिया

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